हर पदार्थ में उत्पाद/ व्यय हो रहा है तो नित्य कैसे ?
क्योंकि हर पदार्थ में – “यह वही है” बना रहता है। यही ध्रौव्यगुण/ नित्यता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/31)
Share this on...
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने नित्य का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए परमार्थ क्षेत्र में नित्य अध्ययन करना परम आवश्यक है।
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने नित्य का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए परमार्थ क्षेत्र में नित्य अध्ययन करना परम आवश्यक है।