निधत्ति/निकाचित

ऐसे कर्मों का स्वभाव देवदर्शन से तथा 9 वें गुणस्थान में जाने से समाप्त हो जाता है तथा यूँ कहें कि – अलग अलग कर्म प्रकृतियों का अलग अलग गुणस्थानों में स्वभाव समाप्त होता है जैसे मिथ्यात्व का 1 गुणस्थान के बाद तथा चारित्र मोहनीय का श्रेणी मांड़ने पर ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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