पाप का फल भोगते समय निमित्त-बुद्धि नहीं लगानी चाहिये,
बल्कि उपादान-बुद्धि लगानी चाहिये ।
पुण्य फल भोगते समय निमित्त-बुद्धि जरूर लगानी चाहिये, उपादान-बुद्धि नहीं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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निमित्त—जो कार्य करने में सहयोग करे या जिसके बिना कार्य न हो उसको कहते हैं। उचित निमित्त के होने पर तदानुसार कार्य होता हैं। उपादान—किसी कार्य के होने में जो उस कार्य रुप परिमणन करें उसे कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य हैं कि पाप का फल भोगते समय निमित्त बुद्वि नहीं लगाना चाहिए बल्कि उपादान बुद्वि लगाना चाहिए। पुण्य फल भोगते समय निमित्त बुद्वि जरुर लगाना चाहिए इसमें उपादान बुद्वि नहीं लगाना चाहिए।
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निमित्त—जो कार्य करने में सहयोग करे या जिसके बिना कार्य न हो उसको कहते हैं। उचित निमित्त के होने पर तदानुसार कार्य होता हैं। उपादान—किसी कार्य के होने में जो उस कार्य रुप परिमणन करें उसे कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य हैं कि पाप का फल भोगते समय निमित्त बुद्वि नहीं लगाना चाहिए बल्कि उपादान बुद्वि लगाना चाहिए। पुण्य फल भोगते समय निमित्त बुद्वि जरुर लगाना चाहिए इसमें उपादान बुद्वि नहीं लगाना चाहिए।