निवृत्ति / प्रवृत्ति
सामायिक में निवृत्ति,
भाव….”मेरा कोई नहीं”।
सामायिक से उठने पर…. “मैत्री भाव सब जीवों से”।
भावों में विपरीतता इसलिये क्योंकि प्रवृत्ति में तो हिंसा होती है, लेकिन जब सबको मित्र मान लिया तो हिंसा हो कैसे सकती है !
मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि सामायिक में निवृत्ति, भाव मेरा कोई नहीं! सामायिक से उठने पर मैत्री भाव सब जीवों से होना चाहिए! भावों में विपरीतता इसलिए क्योंकि प़वति में हिंसा होती है, लेकिन जब सबको मित्र मान लिया जाए तो हिन्सा हो केसे हो सकती है! अतः जीवन को प़वति को निवृत्ति में बदलने पर ही कल्याण हो सकता है!