क्या निश्चय प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, आलोचना में अंतर होता है ?
नहीं, इन तीनों में सिर्फ़ नाम की अपेक्षा ही अंतर है ।
श्री समयसार जी – गाथा 400
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निश्चय काल- – वर्तना जिसका लक्षण है वह निश्चय काल है। निश्चय काल ही वस्तु के परिणमन में निमित्त कारण है। प़तिक़मण- – किये गये दोषों की निवृत्ति का नाम होता है। जब चारित्र का पालन करते हुए साधुओं से कोई दोष हो जाता है तो मन वचन से यह अयोग्य कार्य किया ऐसा पश्चाताप रुप परिणाम उत्पन्न होता है उसे प़तिक़मण कहते हैं। । प़त्याख्यान- – भविष्य में दोष न होने के लिए सन्नद्व होना होता है। आलोचना- – गुरु के सन्मुख अपने दोषों का निवेदन करना आलोचना कहलाती है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि निश्चय प़तिक़मण,प़त्याख्यान और आलोचना में नाम की अपेक्षा ही अन्तर है।
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निश्चय काल- – वर्तना जिसका लक्षण है वह निश्चय काल है। निश्चय काल ही वस्तु के परिणमन में निमित्त कारण है। प़तिक़मण- – किये गये दोषों की निवृत्ति का नाम होता है। जब चारित्र का पालन करते हुए साधुओं से कोई दोष हो जाता है तो मन वचन से यह अयोग्य कार्य किया ऐसा पश्चाताप रुप परिणाम उत्पन्न होता है उसे प़तिक़मण कहते हैं। । प़त्याख्यान- – भविष्य में दोष न होने के लिए सन्नद्व होना होता है। आलोचना- – गुरु के सन्मुख अपने दोषों का निवेदन करना आलोचना कहलाती है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि निश्चय प़तिक़मण,प़त्याख्यान और आलोचना में नाम की अपेक्षा ही अन्तर है।