अंधेरा ही अंधेरा है (वातावरण),
मैं अंधा हूँ, मेरा गुरू भी अंधा है (विशेष ज्ञान नहीं),
हाथ में लाठी भी नहीं (हीन संहनन),
राह उबड़-खाबड़, पथरीली/कांटेदार,
इसीलिये पंचमकाल में मुनि बनना चौथेकाल के भगवान बनने जैसा कठिन है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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3 Responses
पंचम-काल को दुषमा कहते हैं।दुषमा काल में तीर्थंकर आदि विशिष्ट पुण्यात्माओं का जन्म नहीं होता हैं, जबकि इस काल के अंत तक चतुर्विध संघ का अस्तित्व बना रहता है। पंचम-काल के प्रभाव से जब इक्कीसवां कल्पी होता हैं तब तक एक मुनि,एक आर्यका, एक श्रावक,एक श्राविका शेष रहते हैं। अतः यह कथन सत्य है कि आजकल सभी सोचते हैं कि अंधकार ही अंधकार फैला है। इसलिए पंचम-काल में मुनि बनना चौथेकाल के भगवान बनने से कठिन है।
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पंचम-काल को दुषमा कहते हैं।दुषमा काल में तीर्थंकर आदि विशिष्ट पुण्यात्माओं का जन्म नहीं होता हैं, जबकि इस काल के अंत तक चतुर्विध संघ का अस्तित्व बना रहता है। पंचम-काल के प्रभाव से जब इक्कीसवां कल्पी होता हैं तब तक एक मुनि,एक आर्यका, एक श्रावक,एक श्राविका शेष रहते हैं। अतः यह कथन सत्य है कि आजकल सभी सोचते हैं कि अंधकार ही अंधकार फैला है। इसलिए पंचम-काल में मुनि बनना चौथेकाल के भगवान बनने से कठिन है।
“आहथ” ka kya meaning hai please?
अच्छी auditor/editor हो,
corrected.
आशीर्वाद