पदार्थ
मुख्य रूप से → जीव, अजीव।
इनके दो-दो भेद → पुण्य व पाप प्रकार के।
पुण्य जीव रूप → सम्यग्दृष्टि/ पुण्य में प्रवृत्ति करे।
पाप जीव रूप → मिथ्यादृष्टि/ पाप में प्रवृत्ति करे।
अजीव पाप रूप → अनायतनों के पत्थरादि।
अजीव पुण्य रूप → आयतनों के पत्थरादि/ मूर्ति।
आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष भी पुण्य रूप या पाप रूप।
पुण्य मोक्ष → पुण्य से मुक्ति,
पाप मोक्ष → पाप से मुक्ति।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड: गाथा- 621)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने पदार्थ को विस्तृत परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Jo ‘पुण्य मोक्ष’ aur ‘पाप मोक्ष’ ke liye kaha, wahi logic आस्रव, बंध, संवर and निर्जरा me apply karenge ? Ise clarify karenge, please?
हाँ, सब में लगेगा।
Okay.