परमार्थ / स्वार्थ
मध्य-पूर्व में दो समुद्र हैं – डैड सी और गैलिली सी। दोनों में पानी जाॅर्डन नदी से आता है। डैड सी में न तो मछलियाँ हैं, न ही कोई वनस्पति, जबकि गैलिली सी में भाँति-भाँति की वनस्पति व मछलियाँ होती हैं।
इतना फ़र्क क्यों?
गैलिली सी के पानी से गाँवों और शहरों की प्यास बुझती है, खेती होती है। गैलिली सी में कुछ समय विश्राम कर जार्डन नदी भी डैड सी की ओर चल पड़ती है। लगातार पानी का निकास होता रहता है, पर आमद और ख़र्च का संतुलन बना हुआ है।
इसके विपरीत डैड सी किसी को कुछ नहीं देता; फिर भी भीषण गर्मी के कारण उसमें पानी लगातार कम हो रहा है, और इतना खारा हो चुका है कि उसमें जीवन संभव नहीं।
हम क्या बनना चाहते हैं ? डैड सी की तरह ज़िंदा रहते हुए भी मुर्दा, या गैलिली सी की तरह जीवंत और जीवनदायी?
(कमलकांत)
2 Responses
परमार्थ का तात्पर्य यहां मोक्ष है, अथवा जिसका आत्महित और लौकिक दोनों में निहित है।
अतः जिन्दा रहते हुए क्या करना चाहते हो, यदि परमार्थ में लगने का विचार है तो अपना कल्याण करने में समर्थ हो सकते हैं, यदि ऐसा नहीं है तो जीवन समुद्र की तरह व्यर्थ होगा।
स्वार्थ का मतलब लालच होता है, अतः जीवन में स्वार्थ की जगह परमार्थ क्षेत्र में लगना आवश्यक है।