परिणमन

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप परिणमन नहीं कर सकता, पर (अशुद्ध) जीव ज्ञेय रूप परिणमन करता है, जैसे दुश्मन को देख क्रोधी ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Share this on...

4 Responses

  1. द़व्य=-गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं।
    द़व्य कर्म-= जीव के शुभाशुभ भावों के निमित्त से बंधने वाले सूक्ष्म पुद्वगल स्कन्धो को द़व्य कर्म कहते हैं।
    अतः यह कथन सत्य है कि एक द़व्य दूसरे द़व्य पर परिणमन नहीं कर सकता है,पर अशुद्ध जीव ज्ञेय रुप परिणमन करता है, जैसे दुश्मन देख क़ोधी हो जाता हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

December 8, 2019

September 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30