पर्याप्तक तथा अपर्याप्तक प्रकृतियाँ सत्ता में साथ साथ रहते हैं ।
विग्रहगति में अपर्याप्तक अवस्था रहती है ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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3 Responses
जिस प्रकार गृह वस्त्रादि अचेतन पदार्थ पूर्ण और अपूर्ण दोनों प़कार के होते हैं।उसी प्रकार जीव भी पूर्ण व अपूर्व दोनों प़कार के होते हैं।जो जीव अपने योग्य पर्याप्तियां पूर्ण कर लेते हैं वे पर्याप्तक कहता है अथवा जो पूर्ण नहीं कर पाते हैं वे अपर्याप्तक कहलाते हैं।
विग़हगति-विग़ह का अर्थ शरीर है,पूर्व भव के शरीर को छोड़कर नवीन शरीर को ग्रहण करने वाले के लिए जीव गमन करता है उसे विग़हगति कहते हैं।
अतः पर्याप्तक अथवा अपर्याप्तक प़कृतियां सत्ता में साथ साथ रहते हैं।विग़हगति में अपर्याप्तक अवस्था रहतीं हैं।
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जिस प्रकार गृह वस्त्रादि अचेतन पदार्थ पूर्ण और अपूर्ण दोनों प़कार के होते हैं।उसी प्रकार जीव भी पूर्ण व अपूर्व दोनों प़कार के होते हैं।जो जीव अपने योग्य पर्याप्तियां पूर्ण कर लेते हैं वे पर्याप्तक कहता है अथवा जो पूर्ण नहीं कर पाते हैं वे अपर्याप्तक कहलाते हैं।
विग़हगति-विग़ह का अर्थ शरीर है,पूर्व भव के शरीर को छोड़कर नवीन शरीर को ग्रहण करने वाले के लिए जीव गमन करता है उसे विग़हगति कहते हैं।
अतः पर्याप्तक अथवा अपर्याप्तक प़कृतियां सत्ता में साथ साथ रहते हैं।विग़हगति में अपर्याप्तक अवस्था रहतीं हैं।
विग्रहगति में अपर्याप्तक अवस्था “उदय” में रहती है ना, क्योंकि सत्ता में तो पर्याप्तक भी रहेगी ?
विग्रहगति में अपर्याप्त नामकर्म का उदय नहीं, अपर्याप्त अवस्था होती है ।