पर्वराज की विदाई/वात्सल्य
पर्वराज हमें उजाला देकर कल चले गये ।
अब हमारा कर्तव्य है कि उस दीपक में लगातार तेल ड़ालते रहें, लौ/बत्ती को संभालते रहें ताकि वो धर्म का प्रकाश हमारे जीवन में बुझ नहीं पाये ।
ये तभी संभव होगा जब हमारे अंदर वात्सल्य आयेगा, हालाँकि ये भी तय है कि वात्सल्य के बिना जीवन चलता नहीं है,
वात्सल्य ही एक ऐसी चीज है जो हमारे जीवन को हिंसा रहित कर सकती है ।
आचार्य श्री कहते हैं – प्रेम की स्याही और आचरण की कलम से ही जीवन के काव्य का निर्माण होता है ।
आचरण की कलम बिना प्रेम की स्याही के कागज / जीवनों को फाड़ देगी , लिखा कुछ नहीं जायेगा ।
वात्सल्य की बातें तो हम बहुत करते हैं, फिर बात बात में शल्य क्यों कर लेते हैं, कांटें जैसी चुभन क्यों पैदा कर लेते हैं ?
कलम फूल हों, पर कदम (आचरण) शूल ना हों ।
मुनि श्री कुन्थुसागर जी
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“vatasalya”
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