पहले संसार फिर मुक्त

शास्त्रों में पहले संसारी, बाद में मुक्त जीवों का वर्णन क्यों ?
1. पहले संसार ही तो होता है फिर मुक्त होते हैं। उल्टा करने पर अवतारवाद हो जायेगा।
2. जिसमें विविधता/ भेद बहुत, उनका वर्णन पहले होता है जैसे ज्ञान में विकल्प ज्यादा, दर्शन की तुलना में।
3. जो दिख रहा है, उसे पहले समझो, उस पर आस्था लाओ तब जो नहीं दिख रहा (मुक्त) उस पर श्रद्धा आयेगी।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/25)

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6 Responses

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने पहले संसार फिर मुक्त का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।

  2. 2nd point ka according, ज्ञान ko दर्शन se pehle describe karna chahiye, jabki ulta hota hai. Is point ko clarify karenge, please ?

    1. दर्शन बारात/ दूल्हे जैसा होता है। विवाह-स्थल तक पहुंचाने के लिए। पहुंचने के बाद दूल्हा ही दूल्हा।
      तभी तो केवलज्ञान कहा, केवलदर्शन नहीं।

  3. Upar waale example, me बारात, ‘दर्शन’ aur दूल्हा, ‘ज्ञान’ hai na ?

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