धर्म में पाप के नाश करने पर बहुत जोर दिया है, कषाय के नाश पर नहीं।
कारण ?
पाप बहुत व्यापक है, इसमें कषाय भी अंतर्निहित हो जाती है।
(पाप का छोड़ना आसान है, कषाय तो दसवें गुणस्थान तक रहती है)
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी ने पाप एवं कषाय को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है! धर्म में पाप न करने की सलाह दी गई है, पाप को छोडना आसान है लेकिन कषाय बनी रहती है, अतः कषाय को समाप्त करने का प़यास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
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मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी ने पाप एवं कषाय को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है! धर्म में पाप न करने की सलाह दी गई है, पाप को छोडना आसान है लेकिन कषाय बनी रहती है, अतः कषाय को समाप्त करने का प़यास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!