पहले आचार्य श्री विद्यासागर जी हर समस्या का समाधान “पुण्य बढ़ाओ” बताते थे, अब “विशुद्धि बढ़ाने” को कहते हैं ।
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पुण्य-आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है, अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं। विशुद्वि-सातावेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम विशुद्वि है व पाप की मंदता का नाम विशुद्वि है। अतः यह कथन संत है कि पहले आचार्य श्री विद्यासागर जी हर समस्या का समाधान पुण्य पुण्य बढ़ाओ बताते थे, लेकिन अब विशुद्वी को कहते हैं।इसका मुख्य कारण ज्यादातर लोग जीव दया, दान, पूजा आदि करने लगे हैं अतः अब विशुद्वी बढ़ाने को कहते हैं।
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पुण्य-आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है, अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं। विशुद्वि-सातावेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम विशुद्वि है व पाप की मंदता का नाम विशुद्वि है। अतः यह कथन संत है कि पहले आचार्य श्री विद्यासागर जी हर समस्या का समाधान पुण्य पुण्य बढ़ाओ बताते थे, लेकिन अब विशुद्वी को कहते हैं।इसका मुख्य कारण ज्यादातर लोग जीव दया, दान, पूजा आदि करने लगे हैं अतः अब विशुद्वी बढ़ाने को कहते हैं।