पुण्य / पाप
पेट के लिये कमाना पुण्य, क्योंकि जीवों की रक्षा हो रही है, Detached-Attachment, पुण्य का बाप।
पेटी के लिये कमाना पाप, लोभ की रक्षा हो रही है, पाप का बाप लोभ।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
पेट के लिये कमाना पुण्य, क्योंकि जीवों की रक्षा हो रही है, Detached-Attachment, पुण्य का बाप।
पेटी के लिये कमाना पाप, लोभ की रक्षा हो रही है, पाप का बाप लोभ।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
7 Responses
मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का पुण्य एवं पाप का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! जीवन में पुण्य अर्जित करना चाहिए, लेकिन पुण्य का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि त्यागी करना चाहिए ताकि जीवन पुण्यमय बन सकता है! पापों का त्याग करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
1) ‘जीवों की रक्षा हो रही है’ । Yahan par kaunse jeevon ki baat ho rahi hai ?
2) Is post me ‘पेटी’ ka matlab ‘tijori’ right ?
1) परिवार वाले जीव तथा शरीर के आश्रित त्रस जीव।
2) हाँ, पेटी यानी तिजोरी।
सिर्फ कमाई पेट हित,
काम मानिए उत्तम।
पेट छोड़ पेटी भरें,
निकृष्ट मानिए उद्यम।।
शरीर के आश्रित, ‘Nigodiya jeev’ bhi rehte hain, na ?
हाँ,बादर निगोदिया शरीर के आश्रित रहते हैं।
Okay.