पुण्य / पाप

हिंसा/ झूठादि पाप हैं तो अहिंसा/ सत्यादि पुण्य क्यों नहीं ?
अहिंसादि व्रत हैं जो पुण्य से बहुत बड़े/ ऊपर हैं।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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One Response

  1. मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी ने पुण्य एवं पाप का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अपना कल्याण करना है तो पाप से बचना चाहिए ताकि पुण्य के लिए आगे बढते रहें।

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