कर्म-फल में हर्ष-विषाद नहीं करने से पुण्य-बंध बढ़ता ही जाता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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पुण्य- – जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है। अतः पुण्यनुबंधी पुण्य जो पुण्य के उदय से प्राप्त बुद्धि,कोशल,निरोग शरीर आदि क्षमताओं को पुण्योर्जन में लगा देता है। अतः यह कथन सत्य है कि कर्म फल में हर्ष-विवाद नहीं करने से पुण्य-बंध बढ़ता ही रहता है। अतः जीवन में पुण्य बंध बढ़ाने से ही कल्याण हो सकता है।
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पुण्य- – जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है। अतः पुण्यनुबंधी पुण्य जो पुण्य के उदय से प्राप्त बुद्धि,कोशल,निरोग शरीर आदि क्षमताओं को पुण्योर्जन में लगा देता है। अतः यह कथन सत्य है कि कर्म फल में हर्ष-विवाद नहीं करने से पुण्य-बंध बढ़ता ही रहता है। अतः जीवन में पुण्य बंध बढ़ाने से ही कल्याण हो सकता है।