पूजादि धर्म नहीं, धर्म के साधन/आवश्यक हैं जैसे भोजन बनाना ।
दयादि धर्म हैं जैसे भोजन करना ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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धर्म का मतलब देव शास्त्र गुरु पर श्रद्वा रखना होता है। पूजादि का मतलब पंचपरमेष्टि के गुणों का चिन्तवन करना होता है जबकि दया का मतलब दुःखी जीव के प्रति अनुग्रह या उपकार का भाव होता है। अतः मुनि महाराज ने सत्य बताया है कि पूजादि धर्म नहीं बल्कि धर्म के साधन हैं जैसे भोजन बनाना । दयादि धर्म की श्रेणी में आता है जैसे भोजन करना ।
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धर्म का मतलब देव शास्त्र गुरु पर श्रद्वा रखना होता है। पूजादि का मतलब पंचपरमेष्टि के गुणों का चिन्तवन करना होता है जबकि दया का मतलब दुःखी जीव के प्रति अनुग्रह या उपकार का भाव होता है। अतः मुनि महाराज ने सत्य बताया है कि पूजादि धर्म नहीं बल्कि धर्म के साधन हैं जैसे भोजन बनाना । दयादि धर्म की श्रेणी में आता है जैसे भोजन करना ।