प्रमाद
तीर्थंकरों में प्रमाद कैसे समझें, उनके तो वर्धमान चारित्र होता है?
तीर्थंकर आहार के लिये जब उठते हैं तब छठवाँ गुणस्थान होता है, यानी प्रमत्त अवस्था।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
(सातवें गुणस्थान से छठे गुणस्थान में आते समयों में भी अगली-अगली बारों में ऊपर-ऊपर के स्थानों में आते हैं)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने प़माद का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में किसी भी क्षेत्र में प़माद नहीं करना है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।