तीर्थंकर प्रकृति बंध में मुख्य भावना – लोककल्याण,
चक्रवर्ती में अक्षय-दान,
कामदेव में निर्विचिकित्सा ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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6 Responses
बंध—कर्म का आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह होना कहलाता है अथवा दूध व पानी की तरह कर्म और आत्मा का परस्पर संश्लेष संबंध होना बंध कहलाता है।बंध दो प्रकार के हैं भाव और द़व्य बंध।
अतः तीर्थंकर प़कृति बंध में मुख्य भावना लोककल्याण है जबकि चक्रवर्ती में अक्षय-दान, कामदेव में निर्विचिकित्सा के भाव होते हैं।
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बंध—कर्म का आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह होना कहलाता है अथवा दूध व पानी की तरह कर्म और आत्मा का परस्पर संश्लेष संबंध होना बंध कहलाता है।बंध दो प्रकार के हैं भाव और द़व्य बंध।
अतः तीर्थंकर प़कृति बंध में मुख्य भावना लोककल्याण है जबकि चक्रवर्ती में अक्षय-दान, कामदेव में निर्विचिकित्सा के भाव होते हैं।
Can the meaning of “Akshay-daan” be explained please?
अक्षय = जिसका कभी अंत ना हो/ as per the requirements, without limit.
“As per the requirements”, with limit hua na?
मेरा requirement छोटी कार है, तुम्हारा बड़ी;
मुझे छोटी मिलेगी, तुम्हें बड़ी ।
Okay.