बारह भावना, बिना फल की इच्छा से, भाव सहित भाने से लौकांतिक देव तक बन सकते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
Share this on...
One Response
जैन धर्म में बारह भावना का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ हो सकता है। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि बारह भावना, बिना फल की इच्छा से, भाव सहित भाने चाहिए जो लौकांतिक देव तक बन सकते हैं। अतः जीवन में हर भावना को भाव पूर्वक पढना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
One Response
जैन धर्म में बारह भावना का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ हो सकता है। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि बारह भावना, बिना फल की इच्छा से, भाव सहित भाने चाहिए जो लौकांतिक देव तक बन सकते हैं। अतः जीवन में हर भावना को भाव पूर्वक पढना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।