भगवान में शक्ति अनंत, गुरू में असंख्यात, दिखती क्यों नहीं ?
शक्ति का प्रगटीकरण, भक्ति के अनुपात में ही होता है ।
(कुछ भक्तों के जीवन में चमत्कार होते देखें जाते हैं)
मुनि श्री सुधासागर जी
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भक्ति– अर्हन्त आदि के गुणों में अनुराग रखना होता हैं। अतः भगवान् में शक्ति अनंत होती है जबकि गुरु में असंख्यात होती है लेकिन सब नहीं लेपाते है क्योंकि शक्ति का प़कटीकरण भक्ति के अनुपात में ही होता है। कुछ भक्तों के जीवन में चमत्कार होते देखें जातें हैं। अतः जीवन में जितनी भक्ति होती है उतनी शक्ति उदघाटिक होती रहती हैं।
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भक्ति– अर्हन्त आदि के गुणों में अनुराग रखना होता हैं। अतः भगवान् में शक्ति अनंत होती है जबकि गुरु में असंख्यात होती है लेकिन सब नहीं लेपाते है क्योंकि शक्ति का प़कटीकरण भक्ति के अनुपात में ही होता है। कुछ भक्तों के जीवन में चमत्कार होते देखें जातें हैं। अतः जीवन में जितनी भक्ति होती है उतनी शक्ति उदघाटिक होती रहती हैं।