भाव-इन्द्रि… मति ज्ञानावरण के क्षयोपशम से, द्रव्य-इन्द्रि… शरीर नामकर्म/ जातिकर्म के उदय से।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मुनि महाराज जी ने भाव एवं द़व्य इन्द़ि का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!
‘भाव-इन्द्रि… मति ज्ञानावरण के क्षयोपशम से’ ka example de sakte hain, please ?
मन और इंद्रियों की क्षमता अलग-अलग जीवों में अलग-अलग मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम से ही तो होती है।
Okay.
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Comment *
Name *
Email *
Website
Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...In order to pass the CAPTCHA please enable JavaScript.
4 Responses
मुनि महाराज जी ने भाव एवं द़व्य इन्द़ि का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!
‘भाव-इन्द्रि… मति ज्ञानावरण के क्षयोपशम से’ ka example de sakte hain, please ?
मन और इंद्रियों की क्षमता अलग-अलग जीवों में अलग-अलग मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम से ही तो होती है।
Okay.