देवताओं के द्वारा बदला लेने के भाव से, पशुओं के शरीर के साथ भोगभूमि में विकलत्रिक फिक जाते हैं/वहाँ पाये जा सकते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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भोगभूमि—जहाँ क़ृषि आदि कार्य नहीं किए जाते है,
कर्मभूमि—दस प्रकार के कल्पवृक्षों से प्राप्त भोग उपयोग की सामग्री के बिना मनुष्यों की सामग्री के द्वारा मनुष्यों की जीविका चलतीं हैं उसे कहते हैं। विकलत्रिक—दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय जीवों को विकलेन्द्रिय या विकलत्रिक कहते हैं। अतः देवताओं के द्वारा बदला लेने के भाव से, पशुओं के शरीर के साथ भोगभूमि में विकलत्रिक फिक जाते हैं और वहां पाये जा सकतें हैं।
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भोगभूमि—जहाँ क़ृषि आदि कार्य नहीं किए जाते है,
कर्मभूमि—दस प्रकार के कल्पवृक्षों से प्राप्त भोग उपयोग की सामग्री के बिना मनुष्यों की सामग्री के द्वारा मनुष्यों की जीविका चलतीं हैं उसे कहते हैं। विकलत्रिक—दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय जीवों को विकलेन्द्रिय या विकलत्रिक कहते हैं। अतः देवताओं के द्वारा बदला लेने के भाव से, पशुओं के शरीर के साथ भोगभूमि में विकलत्रिक फिक जाते हैं और वहां पाये जा सकतें हैं।