मकर संक्रांति
🔹आज पतंग नहीं,कर्मों को उड़ाओ।
🔹किसी की पतंग मत काटो,अपने कर्म काटो।
🔹ये कैसा मज़ा है जिसमें निरीह पक्षियों का घात हो ?
🔹किसी से पेच नहीं लड़ाना,अपने से लाड़ करना है।
🔹हार-जीत के लक्ष्य से खेल नहीं होता,भाव जुआ होता है।
🔹मज़ा संक्रांति में नहीं,अध्यात्म की क्रांति में है।
🔹चौदह जनवरी कर्म बांधने नहीं चौदह गुणस्थान पार होने को आती है।
🔹संक्रांति में गुड़ के नहीं,अपने अनंतगुण के लड्डू खाओ।
🔹तिली के लड्डू नहीं खाना बल्कि मोह को तिल तिल करके तोड़ दो।
🔹त्यौहार तो उसे कहते हैं जिसमें आराधना का उपहार मिले।🙏🙏
(मंजू रानीवाला)