मनोरंजन में दोष नहीं।
मनोबंधन दोषपूर्ण है। मन बंधना नहीं चाहिये। आदत/ लत न पड़ जाये।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने मनोरंजन को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में सिर्फ मनोरंजन में लिप्त नहीं रहना परम आवश्यक है। अतः बंधन में नहीं रहना चाहिए।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने मनोरंजन को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में सिर्फ मनोरंजन में लिप्त नहीं रहना परम आवश्यक है। अतः बंधन में नहीं रहना चाहिए।