मन

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  1. मन- – नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं अथवा गुण दोष व विचार व स्मरण आदि करना मन का कार्य है।मन को अन्तकरण भी कहते हैं।
    अतः यह कथन सत्य है कि तन को बन्दिशों लगा सकते हैं लेकिन मन पर रोक लगाना मुश्किल है।तन को दो गज की कोठरी कहते हैं लेकिन मन के लिए तीनों लोक में विचरण करता है।तन को ठीक किया जा सकता है लेकिन मन विचित्र है उसको नियंत्रण करना मुश्किल होता है। जीवन का कल्याण करना है तो मन को नियंत्रित करना चाहिए।

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