मन को राजा कहा है क्योंकि वह पाँचों इन्द्रिय को भोगता है/उन पर नियंत्रण करता है ।
मन को बंदर भी कहा है क्योंकि वह किसी एक इन्द्रिय के विषय पर टिकता नहीं है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मन का मतलब नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण आदि करना यह मन का कार्य है।मन को अनिन्दिय या अन्तकरण भी कहते हैं।यह दो प्रकार के होते हैं द़व्य मन और भाव मन। उपरोक्त कथन सत्य है कि मन को राजा कहा है क्योंकि वह पांचों इन्दिय को भोगता है और उन पर नियंत्रण करता है, मन को बंदर भी कहा गया है क्योंकि वह किसी एक इन्द्रिय के विषय पर टिकता नहीं है।
अतः यह सत्य है कि मन बंदर की तरह ही होता है। अतः जब तक मन पर नियंत्रण नहीं करते हैं तो जीवन का कभी कल्याण नहीं हो सकता है।
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मन का मतलब नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण आदि करना यह मन का कार्य है।मन को अनिन्दिय या अन्तकरण भी कहते हैं।यह दो प्रकार के होते हैं द़व्य मन और भाव मन। उपरोक्त कथन सत्य है कि मन को राजा कहा है क्योंकि वह पांचों इन्दिय को भोगता है और उन पर नियंत्रण करता है, मन को बंदर भी कहा गया है क्योंकि वह किसी एक इन्द्रिय के विषय पर टिकता नहीं है।
अतः यह सत्य है कि मन बंदर की तरह ही होता है। अतः जब तक मन पर नियंत्रण नहीं करते हैं तो जीवन का कभी कल्याण नहीं हो सकता है।