मायाचारी / सरलता
ढोलक ऊपर से ढकी/ सुंदर, अंदर से पोल।
इसीलिये पैरों पर रख कर पीटी जाती है, हालांकि वह बांसुरी आदि वाद्यों से बड़ी व भारी-भरकम होती है।
जबकि बांसुरी फटे बांस सी, हलकी फुलकी, अपने अंदर हवा भी नहीं छुपाती, सरल, मधुर स्वर वाली, इसीलिये होठों पर रखी जाती है।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
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मुनि श्री वीरसागर महाराज जी ने मायाचारी एवं सरलता का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! मायाचारी पापों का पिटारा है, अतः इससे बचना चाहिए बल्कि जीवन में सरलता लाना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!