मृदुता के बिना ज्ञान की पात्रता नहीं आती।
इन्द्रिय विषयों और कषायों से सम्बंध नहीं रखने से ऋजुता स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है।
संयम, ज्ञान को क्षायिक और सम्यग्दर्शन को परम-अवगाढ़ बनाता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Share this on...
One Response
संयम का तात्पर्य व़त व समिति का पालन करना, मन वचन काय की अशुभ प़वृति का त्याग करना होता है एवं इन्दियो को भी वश में रखना होता है।मृदुता का तात्पर्य आत्मा को पवित्र एवं निर्मल बनाना है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है मृदुता के बिना ज्ञान की पात्रता नहीं आती है। अतः जीवन में संयम से ही कषायो की समाप्त हो सकती है और ज्ञान को क्षायिक और सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने में समर्थ हो सकतें हैं।
One Response
संयम का तात्पर्य व़त व समिति का पालन करना, मन वचन काय की अशुभ प़वृति का त्याग करना होता है एवं इन्दियो को भी वश में रखना होता है।मृदुता का तात्पर्य आत्मा को पवित्र एवं निर्मल बनाना है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है मृदुता के बिना ज्ञान की पात्रता नहीं आती है। अतः जीवन में संयम से ही कषायो की समाप्त हो सकती है और ज्ञान को क्षायिक और सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने में समर्थ हो सकतें हैं।