योग – (प्राय:) बाह्य अवयवों का हिलना-डुलना,
उपयोग – अंतरंग के विकल्प ।
श्री समयसार जी – पेज – 107
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योग—मन, वचन,काय के द्वारा होने वाले आत्म प्रदेश के परिस्पन्द को कहते हैं।
उपयोग—स्व और पर को ग्रहण करने वाले जीव के परिणाम को कहते हैं।
योग तो सबको मिलता है लेकिन उपयोग अंतरंग के विकल्प पर निर्भर करता हैं।
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योग—मन, वचन,काय के द्वारा होने वाले आत्म प्रदेश के परिस्पन्द को कहते हैं।
उपयोग—स्व और पर को ग्रहण करने वाले जीव के परिणाम को कहते हैं।
योग तो सबको मिलता है लेकिन उपयोग अंतरंग के विकल्प पर निर्भर करता हैं।