जीव… काययोग से शरीरगत वर्गणाओं को, वचनयोग से वचनगत वर्गणाओं को, मनोयोग से मनोगत वर्गणाओं को ग्रहण करता रहता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड: गाथा- 664)
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने योग को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने योग को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।