रक्षक देव अपने भक्तों की रक्षा नहीं बल्कि भगवान के भक्तों की रक्षा करते हैं क्योंकि वे भगवान के अंगरक्षक हैं (भगवान के परिवार की रक्षा करना उनका दायित्व है) ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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देव(भगवान)-जो सदा परमसुख में लीन रहते हैं और जन्म मरण रुप संसार से मुक्त हो गये है वे देव है या जो धर्म के विधाता है वहीं देव कहलाते हैं। अतः यह कथन सत्य है कि रक्षक देव अपने भक्तों की रक्षा नहीं बल्कि भगवान् के भक्तों की रक्षा करते हैं, क्योंकि वे भगवान् के अंग रक्षक है। अतः भगवान् के परिवार की रक्षा करने का दायित्व उनका ही है।
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देव(भगवान)-जो सदा परमसुख में लीन रहते हैं और जन्म मरण रुप संसार से मुक्त हो गये है वे देव है या जो धर्म के विधाता है वहीं देव कहलाते हैं। अतः यह कथन सत्य है कि रक्षक देव अपने भक्तों की रक्षा नहीं बल्कि भगवान् के भक्तों की रक्षा करते हैं, क्योंकि वे भगवान् के अंग रक्षक है। अतः भगवान् के परिवार की रक्षा करने का दायित्व उनका ही है।