राग / धर्मानुराग
सच्चे देव, शास्त्र, गुरु से राग करने में दोष है,
क्योंकि राग व्यक्ति/वस्तु विशेष से होता है ।
रागी से राग करने में कम दोष,
वीतरागी से राग करने में बड़ा दोष ।
पर धर्मानुराग में पुण्य, निर्जरा ।
मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
सच्चे देव, शास्त्र, गुरु से राग करने में दोष है,
क्योंकि राग व्यक्ति/वस्तु विशेष से होता है ।
रागी से राग करने में कम दोष,
वीतरागी से राग करने में बड़ा दोष ।
पर धर्मानुराग में पुण्य, निर्जरा ।
मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
One Response
राग—इष्ट पदार्थों में प़ीति या हर्ष रूप परिणाम होना होता है।
अनुराग—निस्वार्थ प़ेम को अनुराग कहते हैं।
धर्मानुराग धर्म के प़ति ऐसा अनुराग जो विपत्ती में भी बना रहे।