आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज कहा करते थे… राग और मोह दोनों ही आत्मा से भिन्न हैं। मोह अटकाव है जबकि राग भटकाव। मोह की पूरी 28 प्रकृतियां राग द्वेष रूप ही हैं।
कारण ?
संकीर्णता तथा पर्याय बुद्धि।
मुनि श्री सौम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान- 28 फ़रवरी)
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राग और मोह को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए मोह ओर राग का त्याग करना परम आवश्यक है।
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राग और मोह को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए मोह ओर राग का त्याग करना परम आवश्यक है।