राग-द्वेष
राग-द्वेष तो हाड़-मांस से भी बुरा होता है ।
हाड़-मांस के साथ तो केवल-ज्ञान होता है पर राग-द्वेष के साथ असंभव ।
मुनि श्री निर्दोषसागर जी
राग-द्वेष तो हाड़-मांस से भी बुरा होता है ।
हाड़-मांस के साथ तो केवल-ज्ञान होता है पर राग-द्वेष के साथ असंभव ।
मुनि श्री निर्दोषसागर जी
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राग,व्देष और मोह आत्मा में चिपके हुए हैं,यह तीनों हाड़ मांस से भी ज्यादा बुरे होते हैं जबकि हाड़ मांस के साथ तो केवल-ज्ञान होता है पर राग द्वेष होने पर ज्ञान होना असम्भव है। उपरोक्त विकार दूर करने के लिए आत्म ज्ञान होना आवश्यक है ताकि इन राग व्देष मोह की प़वृति को समाप्त कर सकते हैं।