राग / मोह

पहले राग होता है फिर उसमें विकल्प होते हैं तब वह मोह का रूप ग्रहण कर लेता है।

क्षुल्लक श्री सहजानंद जी

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  1. क्षुल्लक श्री सहजानंद का राग एवं मोह का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन का कल्याण करना हो तो राग एवं मोह का त्याग करना परम आवश्यक है।

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