लक्ष्य
जीवन का लक्ष्य मनोरंजन नहीं, रमण है;
बाह्य रमण (विषय-भोगों में) अधोगमन कराता है,पर गिरना ध्येय कैसे हो सकता है!
अंतरंग/ आत्मा में रमण उर्ध्वगमन कराता है।
निर्यापक निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
जीवन का लक्ष्य मनोरंजन नहीं, रमण है;
बाह्य रमण (विषय-भोगों में) अधोगमन कराता है,पर गिरना ध्येय कैसे हो सकता है!
अंतरंग/ आत्मा में रमण उर्ध्वगमन कराता है।
निर्यापक निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
2 Responses
मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि जीवन का लक्ष्य मनोरंजन नहीं, रमण है। ब़ाह्य रमण यानी विषय भोगों में, अधोगमन कराता है, पर गिरना ध्येय कैसे हो सकता है! जबकि अंतरंग यानी आत्मा में रमण उर्धगमन करता है! अतः जीवन के कल्याण के लिए परमार्थ क्षेत्र का लक्ष्य होना चाहिए जो आत्मा में रमना चाहिए!
आत्म रमण वो करता ,
जिसको सम्यक ज्ञान।
तन रंजन तो व्यर्थ में,
जीवन करे तमाम।।