धन संचय
संसार में धन संचय से समृद्धि/ प्रगति बताई, धर्म में दुर्गति।
लेकिन संचित समृद्धि का सदुपयोग किया तो शाश्वत प्रगति।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
संसार में धन संचय से समृद्धि/ प्रगति बताई, धर्म में दुर्गति।
लेकिन संचित समृद्धि का सदुपयोग किया तो शाश्वत प्रगति।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
5 Responses
मुनि श्री वीरसागर महाराज ने लोभ की परिभाषा दी गई है वह पूर्ण सत्य है! जैन धर्म में लोभ आदि से सभी मनुष्य को कभी जीवन में आनन्द एवं प़सन्नता नहीं मिल सकती है! अतः अपने कल्याण के लिए इनके पापों का त्याग करना परम आवश्यक है!
‘संचित समृद्धि’ ka kya meaning hai, please ?
अपनी आवश्यकता से ज्यादा धन संचय करना।
धन संचय तो कीजिए
करके अच्छे कर्म।
सद कार्य में कीजिए,
इस पैसे को खर्च।।
Okay.