प्रायः विकार सद्भाव में और मोह अभाव में पनपते हैं ।
चिंतन
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जीवन में प़त्येक जीव के आत्मा में विकार जैसे राग,द्वेष,मोह के कारण अपना विकास नहीं कर पाते हैं।विभाव का मतलब स्वभाव में विपरीत परिणमन करना है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि प्रायः विभाव सद्भाव में और मोह अभाव में पनपते हैं। अतः जीवन में अपने विकार को पनपते नहीं देना चाहिए और शुद्व भाव से निकालना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
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जीवन में प़त्येक जीव के आत्मा में विकार जैसे राग,द्वेष,मोह के कारण अपना विकास नहीं कर पाते हैं।विभाव का मतलब स्वभाव में विपरीत परिणमन करना है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि प्रायः विभाव सद्भाव में और मोह अभाव में पनपते हैं। अतः जीवन में अपने विकार को पनपते नहीं देना चाहिए और शुद्व भाव से निकालना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
“विभाव” ke place mein, “विकार ” hona chahiye?
Corrected,
Asherwad.
Jee Uncle.