विक्रिया

ये चारौं गतियों में होती है ।
तिर्यंचों में पृथक विक्रिया नहीं होती ।
बादर तैजसकायिक और वायुकायिक तथा पर्याप्तक पंचेंद्रिय तिर्यंच एवं मनुष्य,
तथा भोगभूमि के तिर्यंच और मनुष्य भी औदारिक शरीर के द्वारा विक्रिया करते हैं ।

तत्वार्थ सूत्र टीका – श्री शांतिलाल भाई

Share this on...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

October 15, 2010

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930