जैनेतर को मुनि बनने के लिये, जैन कुलीन से बहुत ज्यादा विशुद्धि चाहिये ।
ऐसे ही अनादि मिथ्यादृष्टि को सादि मिथ्यादृष्टि से ज्यादा विशुद्धता (सम्यग्दर्शन प्राप्त करने को) चाहिये ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
विशुद्वि का मतलब सातावेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम है अथवा कषाय की मंदता का नाम विशुद्वि है।
इसके अतिरिक्त मिथ्यादृष्टि का मतलब मिथ्यात कर्म के उदय से वशीकृत जीव मिथ्यादृष्टि कहलाता है। अथवा जो दोषयुक्त देव को, हिंसा से युक्त धर्म को और परिग़ह से लिप्त गुरु को मानता है और सत्कार करता है वह मिथ्याद्वष्टि हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि जैनेतर को मुनि बनने के लिए, जैन कुलीन से ज्यादा विशुद्वि होना चाहिए। ऐसे ही अनादि मिथ्याद्वष्टि की ज्यादा विशुद्विता होना चाहिए जिससे सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकता है।
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विशुद्वि का मतलब सातावेदनीय कर्म के बंध योग्य परिणाम है अथवा कषाय की मंदता का नाम विशुद्वि है।
इसके अतिरिक्त मिथ्यादृष्टि का मतलब मिथ्यात कर्म के उदय से वशीकृत जीव मिथ्यादृष्टि कहलाता है। अथवा जो दोषयुक्त देव को, हिंसा से युक्त धर्म को और परिग़ह से लिप्त गुरु को मानता है और सत्कार करता है वह मिथ्याद्वष्टि हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि जैनेतर को मुनि बनने के लिए, जैन कुलीन से ज्यादा विशुद्वि होना चाहिए। ऐसे ही अनादि मिथ्याद्वष्टि की ज्यादा विशुद्विता होना चाहिए जिससे सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकता है।
“जैनेतर” ka kya meaning hai, please?
other than Jains.
Okay.