विषय-भोग
सिनेमा देखते हुये एक व्यक्ति मूंगफली खा खा कर छिलके बगल वाले की जेब में डालता जा रहा था ।
दूसरी तरफ बैठे मित्र ने कहा – उसे पता लगते ही, तू पिटेगा !
तुझे पता लगा क्या ?
(वह मित्र की जेब छिलकों से पहले ही भर चुका था)
विषय-भोगों में ऐसी ही तल्लीनता रहती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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विषय भोग का मतलब इन्द़ियों द्वारा उनके योग्य भोग्य पदार्थो को कहते हैं। यह हर प़ाणी की कमजोरी होती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि भोगों में तल्लीनता बनी रहती है, अतः जीवन में उस तल्लीनता का निरोध करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।