वीर्याचार
चारौं प्रकार के आचारों की सुरक्षा के लिये वीर्याचार आवश्यक है।
ज्ञान और दर्शन में तो प्रायः अधिक शक्ति ख़र्च करते हैं पर चारित्र एवं तप के लिये तो शक्ति ही नहीं है, ऐसा कहते रहते हैं।
अपनी शक्ति सब में सुनियोजित करना चाहिये। रुचि पैदा करने से भी भीतर से वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम होता है।
दर्शन, ज्ञान, चारित्र में सम्यक् तथा दश-धर्मों में “उत्तम”, वीर्याचार से ही लगता है।
पाप के क्षेत्र में तो वीर्याचार खूब, धर्म में क्यों नहीं ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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वीर्याचार का तात्पर्य अपनी शक्ति को छिपाकर उत्साहपूर्वक तप आदि पंचाचार का पालन करना होता है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि चारों प़कार के आचारों की सुरक्षा के लिए वीराचार्य आवश्यक है। उपरोक्त कथन भी सत्य है कि दर्शन, ज्ञान और चारित्र में सम्यक् तथा दस धर्मों में उत्तम वीराचार्य से ही होता है। इसलिए पापों में वीराचार्य का उपयोग करने की अपेक्षा धर्म में करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।