व्यवहार स.दर्शन के साथ चारित्र हो भी सकता है अथवा बाद में भी हो ।
पर निश्चय स.दर्शन में तीनों साथ ही होंगे ।
ज्ञानशाला – श्री समयसार – गाथा 11
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सम्यग्दर्शन—-सच्चे देव शास्त्र गुरु के प़ति श्रद्वान होता है अथवा भगवान् के द्वारा कहे गए सात तत्वो का श्रद्वान करना है।
सम्यग्दर्शन के दो भाग होते हैं जिनको व्यवहार और निश्चय कहते हैं।निश्चय-सम्यग्दर्शन रागादि से भिन्न शुद्वात्मा ही उपादेय है अतः ऐसी रुचि का श्रद्वान होना होता है।अतः निश्चय चारित्र बिना निश्चय सम्यग्दर्शन नही हो सकता है।
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सम्यग्दर्शन—-सच्चे देव शास्त्र गुरु के प़ति श्रद्वान होता है अथवा भगवान् के द्वारा कहे गए सात तत्वो का श्रद्वान करना है।
सम्यग्दर्शन के दो भाग होते हैं जिनको व्यवहार और निश्चय कहते हैं।निश्चय-सम्यग्दर्शन रागादि से भिन्न शुद्वात्मा ही उपादेय है अतः ऐसी रुचि का श्रद्वान होना होता है।अतः निश्चय चारित्र बिना निश्चय सम्यग्दर्शन नही हो सकता है।