व्यवहार

द्रव्य संग्रह जी में कहा है… “पुद्गल के सुख दुःख है”, यह व्यवहार से कहा है/ “पर” वस्तु से सुख दुःख की अपेक्षा से कहा है।
व्यवहार “पर” के आश्रित ग्रहण करता है इसलिये संसार का कारण है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/20)

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One Response

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने व्यवहार को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।

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