व्रत

2 प्रकार के –>

  • प्रकीर्णक – एक व्रत भी ले सकते हैं।
  • समूह (Set) – 5 अणुव्रत, 7 शीलव्रत।

दोनों के लेने पर गुणस्थान परिवर्तन होता है।
7 व्यसन त्याग तथा 8 मूलगुण पालन भी Set में हैं, पर इनसे गुणस्थान परिवर्तन नहीं होता है।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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One Response

  1. मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने व़त का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए व़त करना परम आवश्यक है।

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