भावों की शुद्धि के साथ द्रव्य (शारीरिक) शुद्ध भी बहुत महत्वपूर्ण है,
तभी तो शरीर को अपवित्र होने से बचाने के लिये पद्मिनि आदि ने आहुति दी थी और सती का दर्जा पाया ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जैन धर्म में मन, वचन,काय शुद्धि का महत्वपूर्ण स्थान है, अतः इन शुद्धि के द्वारा ही साधुओं को आहार दिया जाता है। अतः उक्त कथन सत्य है भावों की शुद्धि के साथ द़व्य यानी शारीरिक शुद्धि भी महत्वपूर्ण है,तभी तो शरीर को अपवित्र होने से बचाने के लिए पद्मिनी आदि ने आहुति दी थी और सती का दर्जा पाया गया।
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जैन धर्म में मन, वचन,काय शुद्धि का महत्वपूर्ण स्थान है, अतः इन शुद्धि के द्वारा ही साधुओं को आहार दिया जाता है। अतः उक्त कथन सत्य है भावों की शुद्धि के साथ द़व्य यानी शारीरिक शुद्धि भी महत्वपूर्ण है,तभी तो शरीर को अपवित्र होने से बचाने के लिए पद्मिनी आदि ने आहुति दी थी और सती का दर्जा पाया गया।