आचार्य श्री कुंदकुंद कहते हैं….
चारित्र से गिरे तो भ्रष्ट, लेकिन सच्ची श्रद्धा से गिरे तो महाभ्रष्ट।
श्रद्धा (सच्ची) सिद्ध बनने की कच्ची सामग्री है।
सच्चा श्रद्धावान, संसारी होते हुए भी कारण-परमात्मा है।
संसार छूटने पर कार्य-परमात्मा।
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श्रद्धा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए देव, शास्त्र, गुरुओं पर श्रद्वान करना परम आवश्यक है।
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श्रद्धा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए देव, शास्त्र, गुरुओं पर श्रद्वान करना परम आवश्यक है।