संसार चलाने के लिये षट-कर्म,
उनमें जो दोष लगते हैं उनके लिये षट-आवश्यक ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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कर्म का मतलब जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ कार्य होता रहता है,यह सब अपने क़िया कर्दम है।कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होते हैं और संसार में भ़मण करता है।यह द़व्य कर्म,भाव कर्म और नौ कर्म होते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि संसार चलाने के लिए षट कर्म, उनमें जो दोष लगाते हैं, उनके लिए यह षट कर्म आवश्यक है।
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कर्म का मतलब जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ कार्य होता रहता है,यह सब अपने क़िया कर्दम है।कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होते हैं और संसार में भ़मण करता है।यह द़व्य कर्म,भाव कर्म और नौ कर्म होते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि संसार चलाने के लिए षट कर्म, उनमें जो दोष लगाते हैं, उनके लिए यह षट कर्म आवश्यक है।